रविवार, 24 अक्तूबर 2010

सहन-शक्ति

सहन-शक्ति - जब हम यह निश्चय करते हैं कि हम शान्त स्वरुप आत्मा हैं, शान्ति के सागर परमपिता परमात्मा शिव की सन्तान है और शान्तिधाम के निवासी हैं तो हमारे द्वारा एैसा कोई कर्म नहीं होगा जिससे अशान्ति फैले | इस निश्चय से सबसे पहले हमारे अन्दर सहन करने की शक्ति आती है | कोई व्यक्ति अगर गालियाँ देता है तो भी मौ अपनी शान्ति का गुण क्यों नष्ट करुँ ? एक बच्चा किसी आम के पेड़ को पत्थर मारता है लेकिन वह पेड़ उसके जवाब में बच्चें को फल देता है, एक जड़ वस्तु में इतना गुण है तो चौतन्य में तो इससे भी ज्यादा होना चाहिए | लेकिन आज का मनुष्य र्इंट का जवाब पत्थर से देता है| राजयोगी इस सन्दर्भ रुप में सहनशील रहेगा क्योंकि वह जानता है कि दुसरा व्यक्ति अज्ञानता के कारण इस प्रकार का व्यवहार कर रहा है, परन्तु वह स्वयं तो ज्ञानवान है, अगर वह भी अज्ञानी के सदृश्य कर्म करे तो अज्ञानी और ज्ञानी में अन्तर ही क्या रहा ? वह स्वयं शान्तस्वरुप बन शान्ति का दान देगा, वौसे भी क्रोधी मनुष्य की बुध्दि में उस समय तो कोई बात बिठाई नही जा सकती है | तो राजयोगी सहनशक्ति को धारण कर उसकी बात मन में स्वीकार ही नहीं करता जो जवाब में कुछ कहना पड़े | वौसे भी एक पत्थर हथौड़ी और छेनी की ठोकरें सहन करने के बाद ही तो पूज्यनीय मूर्ति बनता है | महान आत्माओं ने अपनी महानता सहनशक्ति के आधार पर ही तो प्राप्त की है, तो मौ शिवबाबा की सन्तान ने अगर सहन कर भी लिया तो कौनसी बड़ी बात हूई ? कोई भी व्यक्ति 9 बार सहन करके 10 वी बार सहन नहीं कर सके तो भी उसे सहनशील नही कहेंगे | इसलिए मुझे सहन करते ही जाना है |


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