मंगलवार, 26 अक्तूबर 2010

मौलिकता एक ऐसा गुण है जो प्रत्येक व्यक्ति का ध्यान तत्काल आकर्षित कर लेता है। उसमें सभी लोगों को सहज ही अपनी और आकर्षित करने की एक महान शक्ति होती है।

वास्तव में मौलिकता का ही दूसरा नाम सूझबूझ और किसी भी कार्य को नए ढंग से करने की कुशलता है। जिस व्यक्ति में ये सभी गुण होते हैं वह अवश्य ही सफल होता है। और तब संसार उसकी सफलता देखकर अवाक रह जाता है।

लेकिन इसके लिए सर्वप्रथम इस बात की आवश्यकता है कि आप अपने सामने आने वाली सभी प्रकार की सम्पूर्ण विघ्न-बाधाओं को हटाते हुए अपने मार्ग का स्वयं निर्माण करें. या अपना मार्ग स्वयं ही निर्धारित करें। तभी संसार पर आपका व्यापक असर पड़ेगा।

हमारे विचार ही विश्वास का आईना हैं
लोग तभी आपको और आपकी प्रतिभा को पहचान पायेंगे। जो भी व्यक्ति कर्मक्षेत्र में अपने सिर को उठाकर, अपना सीना ठोककर अपनी उपस्थिति की घोषणा करता है, संसार उसी का सम्मान करता है, उसी के आगे सिर झुकाता है। और फिर स्वयं ही उसके महान होने की घोषणा कर देता है।

वह उसकी महानता को स्वीकार करके चुप नहीं बैठा रहता बल्कि ऐसे प्रयास करता है कि उस व्यक्ति की महानता की ख्याति फूलों की सुवासित गंध की तरह दिगदिगन्त में फैलती चली जाती है।
आजकल एक बहुत गहरी बात गायब हो गई है,और वो है हमारे इस जीवनचर्या के परिदृश्य में सभी बातों-बातों,पार्टियों और दिखावे के गणित के फेर में जमे हुए हैं,जिससे किसी को भी अपने अन्दर झांकने की फुरसत नहीं मिल पा रही है .आज हम इस आन्दोलन के जरिए तैंतीस सालों के सफ़र के बाद भी अनुभव करते हैं कि हमने अभी तो सफ़र की शुरुआतभर की है.आने वाले पांच सालों में हमें कलागुरुओं की कार्यशालाओं पर जोर देते हुए कक्षा एक से पांच तक की पीढ़ी पर अपने काम को केन्द्रित करना होगा.एक और गौरतलब बात कि समाज में संयुक्त परिवार आज़ादी के बाद से ही लगातार रूप में टूटते जा रहे हैं,वहीं घरों में पति-पत्नी के कामगार बन जाने पर टी.वी. ही संस्कार देने-लेने का एकमात्र साधन हो चला है,ऐसे में हम जैसे संकृतिकर्मियों और शैक्षणिक संस्थानों की जिम्मेदारी बढ़ जाती है.”

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