मंगलवार, 26 अक्तूबर 2010

नारी की महानता के गुणों का गाथा है रामायण

रामायण राम की जीवन गाथा तो है ही साथ ही रामायण में ऐसी बातें और सूत्र भी मौजूद है जो नारी को महान बनाते हैं। रामायण में ऐसी कई नारियां हैं जिन्होंने अपना धर्म पूरी निष्ठा के साथ निभाया और इसी वजह से वे आज भी पूजनीय है। रामायण की प्रमुख महिला पात्र सीता, कैकेयी, कौशल्या, सुमित्रा, अहिल्या, उर्मिला, अनसूया, शबरी, मन्दोदरी, त्रिजटा और शूर्पणखा, लंकिनी, मंथरा हैं। इन सभी महिलाओं में सीता, उर्मिला, अनसूया और मंदोदरी इन महिलाओं को सदैव पूजनीय माना गया है क्योंकि इन्होंने अपना पतिव्रत धर्म कभी नहीं छोड़ा। इनके अतिरिक्त भक्ति-भावना की प्रतिमूर्ति शबरी भी है। लंका में सीता की रखवाली करने वाली त्रिजटा भी है जो राक्षसी होते हुए भी सीता की सेवा कर खुद को अनुगृहित मानती है। वहीं शूर्पनखा जैसी राक्षसी और मंथरा जैसी कुविचारों वाली स्त्रियां भी हैं, जिनसे यह सीख ली जा सकती है कि जीवन में कौन सी गलतियां नहीं करनी चाहिए।

सीता: सीता को धरती की पुत्री माना गया है। सीत अर्थात् हल की नोक से उत्पन्न हुई कन्या सीता कहलाई। सीता में सहनशील, ज्ञानी, पतिव्रता, एक अच्छी बहु, कुशल गृहिणी आदि सभी गुण थे जो स्त्रियों को महान बनाते हैं। हजारों सेवक होने पर भी वह अपने पति श्रीराम की सेवा खुद ही करती थी। वनवास राम को हुआ था लेकिन सीता भी उनके साथ गईं, जिस प्रकार सीता अपने पति के सुख-दुख में भागीदार बनीं और विषम परिस्थितियों में भी उन्होंने अपना पतिव्रत धर्म का उल्लंघन नहीं किया। रावण के वैभवशाली राज्य में रहकर अपना चरित्र नहीं छोड़ा। वह शिक्षा देती है कि हमें खासकर आज की नारियों को अच्छी-बुरी परिस्थितियों में अपने पति और परिवार का साथ नहीं छोड़ना चाहिए। सबसे बड़ा व्रत चरित्र का होता है, किसी भी परिस्थिति में अपना चरित्र हमेशा स्वच्छ बनाए रखना चाहिए।

उर्मिला: उर्मिला सीता की छोटी बहन एवं लक्ष्मण की पत्नी थी। अपने पति के वनवास जाने पर भी पति के सेवा धर्म में उन्होंने कोई विघ्न उत्पन्न नहीं किया। 14 वर्ष तक महल में रहकर भी तपस्चर्या जीवन व्यतीत किया तथा सभी सासों की समभाव से सेवा की। उनके इसी त्याग से लक्ष्मण ने श्रीराम की सेवा पूरी निष्ठा से कर सके। उर्मिला का पूरा जीवन सीता के त्याग से भी कही अधिक महान माना गया है। आज की नारियों के लिए उर्मिला एक ऐसा उदाहरण है जो पति और ससुराल के प्रति त्याग और समर्पण सिखाती है।

मंदोदरी: राक्षस राज रावण की पटरानी होने के बावजूद वह बहुत धार्मिक, गर्वहीन, पतिव्रता महिला थी। अपने पति को सही सलाह दी एवं समय-समय पर अच्छा-बुरा क्या है समझाया। रावण का दुर्भाग्य था जो उसने उनकी बातों पर ध्यान नहीं दिया। मंदोदरी ये जानती थी रावण ने सीता हरण कर एक अधार्मिक कार्य किया था परंतु मंदोदरी ने रावण को बहुत समझाया। वह जान गई थी कि श्रीराम सामान्य मानव नहीं है और रावण अंत निकट आ गया है। ऐसे में भी उसने पतिव्रत धर्म निभाया।

अनसूया: अनसूया का अर्थ है जिसको सूया ना हो। अर्थात् किसी को ईष्र्या ना हो। ईष्र्या सदा खुद का ही नाश करती है। अनसूया ब्रrार्षि अत्रि की पत्नी हैं। सामान्यत: आज की काफी नारियों में यह दुगुर्ण देखने को मिल जाता है और वे इसी के वश होकर अपना भविष्य और पारिवारिक जीवन को काफी हद तक प्रभावित कर देती है। अनसूया से सीखा जा सकता है कि ईष्र्या त्याग कर सभी को साथ लेकर सहज और सुखी जीवन व्यतीत करें।

त्रिजटा: रावण के राज में त्रिजटा प्रमुख राक्षसी थी जिसे रावण ने सीता की देख-रेख की नियुक्त किया था। राक्षसों के बीच रहकर भी वह धार्मिक प्रवृत्ति की थी। माता के समान वह सीता को संबल और मनोबल बढ़ाती थी। त्रिजटा यह सिखाती है कि हम किसी भी कुल में जन्म हो, किसी भी परिस्थिति में हो अच्छे कार्य नहीं छोड़ना चाहिए।

शूर्पणखा: शूर्पणखा के जीवन से यह समझना चाहिए कि जो स्त्री व्यभिचारी होकर, उन्मुक्त पुरुषों से संबंध बनाती है उसकी नाक अर्थात् में समाज इज्जत तथा कान अर्थात् लोक और परलोक दोनों का सर्वनाश हो जाता है। अत: ऐसे जीवन से दूर रहकर धार्मिक कार्यो में ध्यान दिया जाए। परपुरुष साक्षात नारायण के समान एवं परस्त्री साक्षात् महालक्ष्मी के समान होती हैं।

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