. हर बात के लिये हर व्यक्ति के प्रति आभार मानें व प्रगट करें.
2. हरेक व्यक्ति से कुछ न कुछ सीखने का प्रयत्न करें
3. हर कार्य समय पर शुरू करें एवं अधिकतम समय से पहले खतम करने की कोशिश करें
4. हर हफ्ते कम से कम एक नई किताब पढें
5. हर हफ्ते देशसेवा के रूप में कम से कम एक व्यक्ति को हिन्दी या भारतीय भाषा में चिट्ठाकारी के लिये प्रेरित करें
कुछ काम करो, कुछ काम करो,
जग में रह कर कुछ नाम करो,
यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो,दुनियां का महान से महान व्यक्ति भी मेरे आपके समान ही नश्वर ही पैदा होता है. उसकी शारीरिक जरूरतें, मन की विकृतियां, भावनायें एवं वासनायें मेरे आपके समान ही होते हैं. लेकिन फरक यह है कि वे मुझसे और आपसे अधिक आत्म मंथन एवं आत्म नियंत्रण करते हैं. वे एकदम से महान नहीं बनते, लेकिन एक एक सीढी चढते हैं. हम रुक जाते हैं, वे चढते ही रहते हैं.
पापी पेट का चक्कर कुछ ऐसा चला कि चिट्ठाकारी करना भूल गया. लेकिन चिट्ठाकारी नहीं भूला. इस बीच हिन्दी शब्द संसाधक ने ऐसा चक्कर चलाया कि कुछ पूछिये मत. अब सब कुछ लगभग सामान्य दिखने लगा है.
इतिहास से दूरी तो मैंने भी शालेय जीवन में बनाए रखी थी।
बाजार की गुलामी तो हम भारतीय कर ही रहे हैं। जब तक स्वयं के उत्पाद और स्वाभिमान नहीं होगा तब तक ये गुलामी बनी रहेगी।पापी पेट का चक्कर कुछ ऐसा चला कि चिट्ठाकारी करना भूल गया. लेकिन चिट्ठाकारी नहीं भूला. इस बीच हिन्दी शब्द संसाधक ने ऐसा चक्कर चलाया कि कुछ पूछिये मत. अब सब कुछ लगभग सामान्य दिखने लगा है.
इन दिनों सारथी पर लिख नहीं रहा था, लेकिन चिट्ठों को पढता जरूर था. कई बार बडी कुंठा होती थी कि क्या इतिहास से हम कुछ सीख पायेंगे. मेरे इतिहास के शिक्षक तो सब बहुत गडबड किस्म के थे, और इतिहास के प्रति जो प्रेम हो सकता है उसे एकाध पाठ पढाते ही “झाड” कर अलग कर देते थे. कुल मिला कर कहा जाये तो शालेय इतिहास की शिक्षा इतिहास के विरुद्ध एक तावीज/गंडा विद्यार्थी के मन में बांध देता है. ऐसा कम से कम मेरे साथ और मेरे कई मित्रों के साथ हुआ. आगे जाकर धर्मविज्ञान की शिक्षा ली तो पाया कि वहां भी इतिहास के अध्यापन/अध्ययन की स्थिति इतनी ही बदतर है.
दर असल इतिहास एक गजब का विषय है. शायद अनुभव और इतिहास मनुष्य के सबसे बडे शिक्षक हैं. लेकिन इतिहास के आस्वादन से वंचित हम में से अधिकतर लोग इतिहास से कुछ भी नहीं सीख पाते हैं. अब भारत का इतिहास ही ले लीजिये. पिछले ५००० साल का इतिहास इस बात को एकदम स्पष्ट बताता है कि देश के विकास के लिये क्या उचित है और क्या अनुचित है. लेकिन इतिहास के आस्वादन से वंचित हम लोग शायद कभी ये बातें न सीख पायेंगे और पीढी दर पीढी गुलाम ही बने रहेंगे. कल अंग्रेंजों के गुलाम थे, आज उनके व्यापारिक हितों के गुलाम हैं.
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This entry was written by Shastri JC Philip and posted on July 14, 2010 at 12:16 pm and filed under विश्लेषण. Bookmark the permalink. Follow any comments here with the RSS feed for this post. 12 Responses to “क्या हम कभी सुधरेंगे?”
sandhya gupta Says:
July 14th, 2010 at 1:25 pm
शायद अनुभव और इतिहास मनुष्य के सबसे बडे शिक्षक हैं. लेकिन इतिहास के आस्वादन से वंचित हम में से अधिकतर लोग इतिहास से कुछ भी नहीं सीख पाते हैं.
Aapki baat se sahmat hoon.
प्रवीण पाण्डेय Says:
July 14th, 2010 at 2:08 pm
हमारे न विकसित होने का यह भी कारण है कि हमने इतिहास से वही सीखा जो हमारे स्वार्थ साधने के उपयुक्त था। शेष सब बिसार दिया हमने।
सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी Says:
July 14th, 2010 at 2:15 pm
बहुत दिनों के बाद आपको हंदी में में पढ़ने का मौका मिला है। नैरंतर्य बनाए रखें।
सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी Says:
July 14th, 2010 at 2:18 pm
“हंदी में में” के बजाय “हिंदी में” पढ़ें । क्षमा प्रार्थना।
संगीता पुरी Says:
July 14th, 2010 at 4:58 pm
कल अंग्रेंजों के गुलाम थे, आज उनके व्यापारिक हितों के गुलाम हैं.
मुझे यह देखकर सच में ताज्जुब होता है .. पढे लिखे होकर भी हम मानसिक गुलाम कैसे हो जाते हैं !!
PN Subramanian Says:
July 14th, 2010 at 6:26 pm
अब सुधरेंगे की नहीं, यह तो काल ही निश्चित कर सकता है परन्तु आपकी वापसी सुखद रही.
राज भाटिया Says:
July 14th, 2010 at 7:08 pm
ओर यह कांमन वेल्थ गेम क्या है??कांमन वेल्थ देशो मै कोन कोन से देश आते है?
यह गुलामी हमारी जींस मै हे…..
arvind mishra Says:
July 14th, 2010 at 9:37 pm
हम सब बचपन में पढ़ते थे कि इतिहास भूगोल बहुत बेवफा रात भर पढ़े दिन को सफा
और हम इतिहास से नहीं सीखते इसलिए उसे दुहराते रहते हैं ..
बहुत दिन बाद आयी यह पोस्ट !
भारतीय नागरिक Says:
July 24th, 2010 at 11:08 am
आपने हद दर्जे की सही बात कही है. जो इतिहास से सबक नहीं लेता, इतिहास उसे सबक लेने लायक नहीं छोड़ता.
E-Guru Rajeev Says:
July 27th, 2010 at 1:21 am
कल अंग्रेंजों के गुलाम थे, आज उनके व्यापारिक हितों के गुलाम हैं.
कुछ लोग ऐसे होते हैं जिनके आने पर ही महफ़िल जवान होती है, आप उनमें से हैं.
सुब्रमनियन जी ने सही कहा है.
दिनेशराय द्विवेदी Says:
August 19th, 2010 at 6:57 pm
हम इतिहास का उपयोग मिथ्या गौरव के लिए करते हैं उस से सीखने के लिए नहीं।
अतुल शर्मा Says:
August 22nd, 2010 at 1:27 pm
इतिहास से दूरी तो मैंने भी शालेय जीवन में बनाए रखी थी।
बाजार की गुलामी तो हम भारतीय कर ही रहे हैं। जब तक स्वयं के उत्पाद और स्वाभिमान नहीं होगा तब तक ये गुलामी बनी रहेगी।
सहन शील....
इतने भी सहन शील ना बनो की दुशमन अपनी दुष्टा से आप को दुख देता जाये,
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भगवान की प्राप्ति...
हमे भगवान की प्राप्ति के लिये वन वन घुमने , या तपस्या करने की जरुरत नही, बस हमारा मन बिलकुल शुद्ध होना चाहिये..... रविदास जी।
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भगवान के हाथ देने के लिये हमेशा खुले है, लेने के लिये हमे मेहनत तो करनी ही होगी.... गुरु नानक देव जी
समझो जिससे यह व्यर्थ न हो!!
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